Tadoba Andhari Tiger Reserve: महाराष्ट्र में बाघों की सुरक्षा को लेकर चिंताजनक हालात सामने आ रहे हैं। जनवरी 2025 से लेकर अप्रैल 2025 तक के केवल चार महीनों में राज्य में 25 बाघों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा देश में बाघों की कुल मौतों का करीब 37% है, जिससे विदर्भ के जंगलों और ताड़ोबा जैसे संरक्षित क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
Tadoba Andhari Tiger Reserve बाघ संरक्षण के प्रयास सवालों के घेरे में

राज्य में बाघों की मौत के ये आंकड़े वन विभाग की कार्यप्रणाली और संरक्षण नीति पर सवाल उठाते हैं। इन मौतों के पीछे प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ सड़क और रेल हादसे, और अवैध शिकार भी जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अब तक हुई 25 मौतों में से 20 प्राकृतिक और आकस्मिक रहीं, जबकि 4 मामले शिकार से जुड़े हैं और 1 मौत संदिग्ध मानी जा रही है।
विदर्भ के जंगलों में बाघों की स्थिति

देशभर में कुल 3,925 बाघों की गणना हुई है, जिनमें से महाराष्ट्र में 444 बाघ हैं। विदर्भ के जंगल राज्य की बाघ आबादी का केंद्र हैं, और ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिजर्व यहां का सबसे बड़ा सुरक्षित क्षेत्र है, जहां करीब 120 बाघ मौजूद हैं।
अप्रैल 2025: एक और काला अध्याय

अप्रैल महीने में बाघों की मौतों ने एक बार फिर खतरे की घंटी बजा दी। ताड़ोबा रिजर्व में 3 अप्रैल को एक बाघिन मृत मिली थी। इसके बाद 14 और 20 अप्रैल को क्रमशः परियोजना क्षेत्र के बाहर और नाकाडोंगरी रेंज में दो और बाघिनों की मौत दर्ज की गई। महज एक महीने में ही चार बाघों का यूं मारा जाना वन विभाग की सतर्कता पर प्रश्न खड़ा करता है।
जनवरी 2025 में सबसे अधिक मौतें
अगर मौतों के आंकड़े देखें तो जनवरी 2025 सबसे घातक रहा। सिर्फ इसी महीने में 10 बाघों की मौत दर्ज की गई। 2 जनवरी को चंद्रपुर जिले के सिंदेवाही रेंज में एक बाघ परियोजना क्षेत्र के बाहर मृत पाया गया था, जिसने इस संकट की शुरुआत की थी।
पिछले 12 सालों का भयावह आंकड़ा
2012 से लेकर सितंबर 2024 तक के 12 सालों में महाराष्ट्र में कुल 251 बाघों की मौत हो चुकी है। इस दौरान मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 355 बाघ मरे, जबकि महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। कर्नाटक में 179 और उत्तराखंड में 132 बाघों की जान गई है।
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जैव विविधता पर संकट की आहट
बाघ न सिर्फ वन्यजीवों का सर्वोच्च शिकारी है, बल्कि पूरे जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन भी उसी पर निर्भर करता है। बाघों की लगातार होती मौतें देश की जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बन सकती हैं।
समाधान की दिशा में ठोस कदम जरूरी
इतनी बड़ी संख्या में मौतों के बावजूद महाराष्ट्र वन विभाग अब तक केवल सतही कदमों तक ही सीमित है। वक्त की मांग है कि बाघों की सुरक्षा के लिए तकनीक आधारित निगरानी, रेल और सड़क मार्गों पर अवरोधक, ग्रामीण समुदायों में प्रशिक्षण, और जनजागरूकता अभियान को मजबूती दी जाए। तभी इस संकट पर काबू पाया जा सकता है।
निष्कर्ष
Tadoba Andhari Tiger Reserve महाराष्ट्र में बाघों की लगातार होती मौतें सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह राज्य की वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा सवालिया निशान छोड़ती हैं। ताड़ोबा अंधारी जैसे प्रतिष्ठित बाघ अभयारण्यों में भी सुरक्षा उपायों की कमी स्पष्ट दिख रही है। यदि समय रहते आधुनिक निगरानी तकनीक, अवरोधक सिस्टम और स्थानीय समुदायों को शामिल कर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और गहरा सकता है। बाघों का संरक्षण न केवल जैव विविधता के लिए, बल्कि पूरे पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी है। अब समय आ गया है कि वन विभाग सतही कार्रवाई से आगे बढ़कर दीर्घकालिक और प्रभावी रणनीति अपनाए, ताकि जंगल का राजा अपने प्राकृतिक घरों में सुरक्षित रह सके।