“यह जंगल नहीं है, बल्कि केवल एक विशाल पेड़ है!” — यह वाक्य पूरी तरह उस अद्भुत वृक्ष को समर्पित है जिसे दुनिया थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़ के नाम से जानती है। यह विश्व का सबसे बड़ा जीवित बरगद का पेड़ है, जो भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है।
यह विशाल बरगद का पेड़ केवल अपने आकार के कारण ही नहीं, बल्कि अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह पेड़ न सिर्फ प्रकृति का चमत्कार है बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक गौरवपूर्ण प्रतीक भी है।
आंध्र प्रदेश में थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़ का महत्व
हालाँकि पर्यटन की दृष्टि से आंध्र प्रदेश को आमतौर पर अन्य राज्यों की तुलना में कम आंका जाता है, लेकिन घरेलू पर्यटन के मामले में यह देश का नंबर एक राज्य है। यहाँ हर वर्ष लगभग 120 मिलियन पर्यटक आते हैं, जिनमें से अधिकतर हिंदू तीर्थयात्री होते हैं, जो विशेष रूप से तिरुपति आते हैं — जहां विश्व के सबसे समृद्ध मंदिरों में से एक स्थित है।
तिरुपति से दक्षिण की ओर यात्रा करने वाले तीर्थयात्री पुट्टपर्थी भी जाते हैं, जो प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा का निवास स्थान रहा है। यहां से लोग लेपाक्षी मंदिर के अद्भुत गुरुत्वाकर्षण-विरोधी स्तंभ को देखने जाते हैं और कादिरी में श्री लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर के दर्शन करते हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों के बीच, कादिरी से लगभग 25 किमी दूर, चट्टानों और घाटियों के बीच स्थित है — एक अनोखा प्राकृतिक चमत्कार: थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज: थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़
यह क्षेत्र भारत के सबसे शुष्क इलाकों में से एक है, लेकिन यहीं खड़ा है वह विशाल बरगद का वृक्ष, जिसे 1989 में पहली बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया। 2017 में रिकॉर्ड को अपडेट किया गया, और पाया गया कि यह पेड़ 550 वर्ष पुराना है। इसकी शाखाएं लगभग 5 एकड़ तक फैली हुई हैं और इसकी परिधि 854 मीटर मापी गई है।
इस वृक्ष को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय जाता है पत्रकार डॉ. सत्यनारायण अय्यर को। वे स्वयं को मज़ाक में ‘रिग्रेट अय्यर’ कहा करते थे, क्योंकि उनकी कहानियाँ अक्सर खारिज कर दी जाती थीं। लेकिन 1989 में उनकी थिम्माम्मा मर्रिमनु पर की गई खोज ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया।
वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व
आउटरीच इकोलॉजी द्वारा 2008 से 2010 के बीच भारत में विशाल पेड़ों का सर्वेक्षण किया गया, जिसमें पता चला कि विश्व के सबसे बड़े सात बरगद के पेड़ भारत में ही स्थित हैं, और थिम्माम्मा मर्रिमनु उनमें सबसे विशाल है। इसकी 4,000 से अधिक मुख्य शाखाएं हैं। हालाँकि समय के साथ-साथ यह पेड़ चक्रवातों और सूखे के कारण आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है, लेकिन इसकी जीवनशक्ति अब भी बरकरार है और यह निरंतर फैल रहा है।
थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़ से जुड़ी पौराणिक कथा
इस पेड़ के जन्म को लेकर एक किंवदंती प्रसिद्ध है। मान्यता है कि वर्ष 1433 ईस्वी में थिम्मा नामक एक महिला ने इस स्थान पर अपने पति की मृत्यु के पश्चात सती हो गई थीं। उनके पति कुष्ठ रोग से पीड़ित थे और उनके निधन के बाद थिम्मा ने उनके साथ सती होने का निर्णय लिया। ऐसा माना जाता है कि उसी स्थान पर यह बरगद का पेड़ उगा, और तभी से इसे “थिम्माम्मा मर्रिमनु” कहा जाने लगा।
आध्यात्मिक ऊर्जा और औषधीय मान्यता
कई भक्तों का मानना है कि इस पेड़ में जादुई और औषधीय गुण हैं। विशेषकर निःसंतान दंपति यहां संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं। यह भी कहा जाता है कि इसकी मोटी और फैली हुई जड़ों को स्पर्श करने से शरीर, मन और आत्मा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लोग यहां आकर पवित्र मंत्रों का जाप करते हैं और वृक्ष की छाया में ध्यान लगाते हैं।
यह पेड़ न केवल पर्यावरण के लिए ऑक्सीजन प्रदान करता है, बल्कि यह उस संस्कृति और श्रद्धा का भी प्रतीक है जो सदियों से भारतीय जनमानस में रची-बसी है।
निष्कर्ष
थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़ केवल एक विशालकाय वृक्ष नहीं है, बल्कि यह भारत की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। यह पेड़ न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से अद्भुत है, बल्कि धार्मिक विश्वासों और जनश्रुतियों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इसकी विशालता, ऐतिहासिक मान्यता और भक्तों की आस्था इसे विश्वभर में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह वृक्ष न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है, बल्कि यह बताता है कि प्रकृति और आस्था का संगम कितना शक्तिशाली हो सकता है। यदि आप कभी आंध्र प्रदेश जाएं, तो थिम्माम्मा मर्रिमनु पेड़ का दर्शन अवश्य करें — यह अनुभव जीवन भर आपके साथ रहेगा।