Wildlife Protection Act 1972 : वन्यजीव संरक्षण अधिनियम एक विस्तृत मार्गदर्शिका

🗓️ Published on: April 2, 2025 6:29 pm
Wildlife Protection Act 1972

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act 1972) भारत में 1972 में लागू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों, जैव विविधता और प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना है। यह अधिनियम अवैध शिकार, वन्यजीव व्यापार और वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए बनाया गया था।

Wildlife Protection Act 1972 – वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का इतिहास

भारत में 1972 से पहले वन्यजीव संरक्षण के लिए कोई सख्त कानून नहीं था। लेकिन बढ़ते शिकार और अवैध व्यापार के कारण वन्यजीवों की कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर आ गईं। इसलिए सरकार ने इस अधिनियम को लागू किया, जिससे वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की विशेषताएँ

  1. वन्यजीवों का वर्गीकरण: अधिनियम के तहत वन्यजीवों को पाँच अनुसूचियों में बाँटा गया है।
  2. शिकार पर प्रतिबंध: अधिनियम के तहत अवैध शिकार और वन्यजीवों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया है।
  3. संरक्षित क्षेत्र: अधिनियम के तहत राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षित वन क्षेत्रों की स्थापना की गई।
  4. दंड और सजा: इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
  5. वन्यजीव बोर्ड का गठन: केंद्र और राज्य स्तर पर वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए विशेष बोर्ड गठित किए गए हैं।

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धाराएँ और उनकी प्रयुक्ति

  1. धारा 2: अधिनियम में प्रयुक्त परिभाषाएँ।
  2. धारा 3: भारतीय वन्यजीव सलाहकार बोर्ड की स्थापना।
  3. धारा 6: राज्य वन्यजीव बोर्ड की स्थापना।
  4. धारा 9:
    • किसी भी अनुसूची 1 और 2 में सूचीबद्ध वन्यजीव के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध।
    • उल्लंघन करने पर कड़ी सजा और दंड।
  5. धारा 11:
    • विशेष परिस्थितियों में शिकार की अनुमति (यदि कोई वन्यजीव मानव जीवन के लिए खतरा बन जाए)।
  6. धारा 17A:
    • विशेष रूप से संरक्षित पौधों की सुरक्षा।
    • इन पौधों की कटाई, नष्ट करना, एकत्र करना प्रतिबंधित।
  7. धारा 18:
    • वन्यजीव अभयारण्यों की अधिसूचना।
    • वन क्षेत्र को संरक्षित घोषित करने की प्रक्रिया।
  8. धारा 27:
    • वन्यजीव अभयारण्यों में अवैध प्रवेश पर प्रतिबंध।
    • उल्लंघन करने पर जुर्माना और सजा।
  9. धारा 29:
    • वन्यजीवों के आवासों को नुकसान पहुंचाने पर प्रतिबंध।
    • अवैध वनों की कटाई, अतिक्रमण, निर्माण गतिविधियों पर रोक।
  10. धारा 35:
  • राष्ट्रीय उद्यानों की घोषणा।
  • इन क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप और गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध।
  1. धारा 38J:
  • चिड़ियाघरों के प्रबंधन से संबंधित प्रावधान।
  • चिड़ियाघरों में वन्यजीवों की देखभाल सुनिश्चित करना।
  1. धारा 39:
  • वन्यजीव संपत्ति की सरकार द्वारा जब्ती।
  • अवैध रूप से रखे गए वन्यजीव उत्पादों की जब्ती।
  1. धारा 49B:
  • वन्यजीव उत्पादों के व्यापार पर प्रतिबंध।
  • वन्यजीवों से बने उत्पादों की खरीद-बिक्री अवैध।
  1. धारा 51:
  • अधिनियम के उल्लंघन पर दंड।
  • न्यूनतम 3 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान।
  1. धारा 52:
  • वन्यजीव अपराधों की रिपोर्टिंग।
  • कोई भी व्यक्ति वन्यजीव अपराध की सूचना दे सकता है।
  1. धारा 55:
  • अधिकारियों को दंड लागू करने की शक्ति।
  • वन्यजीव अपराधों की जांच और कानूनी कार्रवाई करने की शक्ति।

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूचियाँ

  1. अनुसूची 1 और 2: इन अनुसूचियों में सूचीबद्ध वन्यजीवों को सबसे अधिक सुरक्षा दी जाती है। इनमें बाघ, शेर, गैंडा और हाथी शामिल हैं।
  2. अनुसूची 3 और 4: इनमें वे वन्यजीव शामिल हैं जिन्हें थोड़ी कम सुरक्षा दी जाती है, लेकिन इनका शिकार करना भी प्रतिबंधित है।
  3. अनुसूची 5: इसमें वे जीव-जंतु शामिल हैं जिन्हें मारने की अनुमति दी गई है, जैसे कि चूहे और अन्य हानिकारक प्रजातियाँ।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का महत्व

  • जैव विविधता की सुरक्षा में सहायक।
  • पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक।
  • अवैध शिकार और तस्करी पर रोक लगाता है।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित करता है।

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वन्यजीव संरक्षण में हमारी भूमिका

  • वन्यजीवों का अवैध शिकार और व्यापार न करें।
  • वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा करें।
  • सरकार द्वारा चलाई जा रही वन्यजीव संरक्षण योजनाओं में सहयोग करें।
  • जागरूकता फैलाएँ और अन्य लोगों को भी इसके प्रति संवेदनशील बनाएं।

निष्कर्ष

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 भारत में जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अधिनियम के माध्यम से कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया गया है। हमें भी वन्यजीवों के संरक्षण में अपना योगदान देना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस प्राकृतिक धरोहर का आनंद उठा सकें।

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