Nandanvan Jungle Safari: छत्तीसगढ़ के नंदनवन जंगल सफारी से नेपाल की कोसी टप्पू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी तक 1165 किलोमीटर की लंबी उड़ान भरने वाला हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्ध ‘जटायु’, केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि यह जीवंत उदाहरण है कि समर्पण, विज्ञान और संरक्षण एक साथ मिलकर क्या चमत्कार कर सकते हैं।
Nandanvan Jungle Safari वन्यजीव संरक्षण की उड़ान
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मौके पर कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता से भरपूर है और अब यह वन्यजीव संरक्षण की नई दिशा में अग्रसर हो रहा है। ‘जटायु’ की यह यात्रा केवल आकाश में एक उड़ान नहीं, बल्कि विश्वास, पुनर्निर्माण और भविष्य की संभावनाओं की भी कहानी है।
कैसे हुई थी शुरुआत?
करीब दो महीने पहले, बिलासपुर वनमंडल क्षेत्र में एक हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्ध घायल अवस्था में मिला था। वन विभाग की टीम ने तत्परता दिखाते हुए उसका रेस्क्यू किया। प्राथमिक उपचार के बाद उसे नंदनवन जंगल सफारी, नया रायपुर लाया गया। यहाँ विशेषज्ञों की देखरेख में उसका सफल इलाज हुआ।
रेडियो टेलीमेट्री से निगरानी
11 अप्रैल 2025 को गिद्ध ‘जटायु’ को पूरी तरह स्वस्थ पाए जाने पर रेडियो टेलीमेट्री टैग लगाकर प्राकृतिक वातावरण में वापस छोड़ा गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की संयुक्त टीम ने उसकी उड़ान पर लगातार नज़र रखी। जटायु ने छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार पार करते हुए नेपाल की प्रसिद्ध कोसी टप्पू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी तक उड़ान भरी — यह प्रमाण है कि वह पूर्णत: स्वस्थ है और प्राकृतिक व्यवहार में लौट चुका है।
न केवल एक, बल्कि तीन सफल कहानियाँ
जटायु की कहानी अकेली नहीं है। छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हाल के वर्षों में तीन अलग-अलग प्रजातियों के गिद्धों को सफलतापूर्वक पुनःस्थापित किया है:
- व्हाइट रंप्ड वल्चर: भानुप्रतापपुर क्षेत्र से रेस्क्यू किया गया, जिसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने टैग कर निगरानी में लिया। आज यह गिद्ध मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले में सक्रिय है।
- इजिप्शियन वल्चर: रायपुर-बिलासपुर मार्ग से बचाकर अभनपुर क्षेत्र में छोड़ा गया। यह गिद्ध अब नियमित रूप से वहाँ देखा जा रहा है और पारिस्थितिक तंत्र में योगदान दे रहा है।
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आधुनिक तकनीक से मिल रही मदद
नंदनवन जंगल सफारी के संचालक धमशील गणवीर बताते हैं कि रेडियो टेलीमेट्री जैसी तकनीक से गिद्धों की गतिविधियाँ, प्रवास मार्ग और निवास स्थलों की सटीक जानकारी मिलती है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण संरक्षण नीतियों को और प्रभावशाली बनाता है।
गिद्ध: प्रकृति के सफाईकर्मी
गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के सफाईकर्मी माने जाते हैं। वे मृत पशुओं को खाकर संक्रमण फैलने से रोकते हैं। लेकिन बीते दशकों में डाइकलोफेनाक जैसी हानिकारक दवाओं के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। इसलिए हर एक सफल रिहाई हमारे पर्यावरण के लिए बड़ी उपलब्धि है।
सरकार की दूरदर्शी नीति का परिणाम
वन मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि जटायु और अन्य गिद्धों की सफल निगरानी राज्य के लिए गर्व की बात है। यह छत्तीसगढ़ की दूरदर्शी वन्यजीव संरक्षण नीति, वैज्ञानिक सोच और टीम वर्क का प्रमाण है। जटायु की यह ऐतिहासिक उड़ान यह साबित करती है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो घायल पंख भी दोबारा उड़ान भर सकते हैं।