दार्जिलिंग स्थित पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क, जिसे आमतौर पर दार्जिलिंग जू कहा जाता है, लगभग 7000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से आपको बर्फ से ढंके पर्वतों का शानदार दृश्य दिखाई देता है, जिनमें कंचनजंगा पर्वत भी शामिल है – जो दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। लेकिन इस चिड़ियाघर की सबसे बड़ी खासियत सिर्फ इसका लोकेशन नहीं, बल्कि यह है कि यहां दुनिया में सबसे अधिक कैद में रखे गए स्नो लेपर्ड्स पाए जाते हैं – कुल 11 बर्फीले तेंदुए, जिनमें दो शावक भी शामिल हैं।
बर्फीला तेंदुआ: संकटग्रस्त प्रजाति की रक्षा में बड़ा कदम
स्नो लेपर्ड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है। IUCN की रेड लिस्ट में इसे ‘असुरक्षित’ (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है। अनुमानित रूप से दुनिया में इनकी संख्या 4,000 से 7,500 के बीच है, जिनमें से लगभग 718 भारत में मौजूद हैं। इनकी आबादी में गिरावट का मुख्य कारण है अवैध शिकार, पारंपरिक औषधियों में इनके अंगों का इस्तेमाल, और मानव जनित गतिविधियों से इनके प्राकृतिक आवासों का घटता क्षेत्र।
1983 में शुरू हुआ था संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम
दार्जिलिंग चिड़ियाघर ने 1983 में स्नो लेपर्ड्स के लिए विशेष प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत की थी। चिड़ियाघर के निदेशक डॉ. बसवराज होलेयाची के अनुसार, दार्जिलिंग का मौसम इस प्रजाति के लिए बेहद अनुकूल है। यहाँ इनके लिए चट्टानी, गुफाओं से युक्त प्राकृतिक निवास जैसा वातावरण तैयार किया गया है।
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पहले दो तेंदुए स्विट्ज़रलैंड के ज़्यूरिख़ चिड़ियाघर से मंगवाए गए थे, बाद में अमेरिका और स्वीडन से भी कुछ जोड़े आए। स्नो लेपर्ड बेहद शर्मीले और एक-दूसरे के प्रति आक्रामक हो सकते हैं, इसलिए इनका प्रजनन आसान नहीं होता। इनके व्यवहार पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
2023-24 में हुए छह शावकों का जन्म
1989 में यहाँ पहली बार एक मादा ने दो शावकों को जन्म दिया। इसके बाद से अब तक 81 स्नो लेपर्ड शावकों का जन्म यहाँ हो चुका है। 2023 और 2024 में ही छह नन्हे तेंदुए इस दुनिया में आए हैं। कुछ को यहीं रखा गया और कुछ को देश के अन्य चिड़ियाघरों में भेजा गया जो इस संरक्षण कार्यक्रम में भाग लेते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मान्यता और रिकॉर्ड
इस ज़ू को 2007 में Central Zoo Authority ने स्नो लेपर्ड संरक्षण का प्रमुख केंद्र घोषित किया। साथ ही, विश्व स्तरीय संस्था WAZA (World Association of Zoos and Aquariums) इनके प्रजनन कार्यक्रम और डेटा को इंटरनेशनल स्टड बुक के माध्यम से ट्रैक करती है।
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रेड पांडा संरक्षण में भी दार्जिलिंग जू अग्रणी
इस चिड़ियाघर की एक और सफलता है रेड पांडा संरक्षण। 1986 में शुरू हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत 1 नर और 3 मादा रेड पांडा से हुई थी। वर्तमान में दार्जिलिंग चिड़ियाघर में 21 रेड पांडा हैं। संरक्षण प्रयासों के तहत, वर्ष 2022 से 2024 के बीच 9 रेड पांडा (3 नर और 6 मादा) को सफलतापूर्वक उनके प्राकृतिक आवास यानी जंगल में पुनः स्थापित किया गया। इन प्रभावी प्रयासों के चलते दार्जिलिंग जू को 2024 में WAZA कंजर्वेशन अवॉर्ड के लिए नामांकित किया गया, जो इसकी पर्यावरणीय प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।
निष्कर्ष
पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क न केवल दर्शनीय स्थल है, बल्कि यह वन्यजीव संरक्षण का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है। यहाँ की पहाड़ी जलवायु, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तैयार किए गए बाड़े, और अनुभवी स्टाफ ने इस चिड़ियाघर को वैश्विक स्तर पर एक मॉडल बना दिया है। स्नो लेपर्ड और रेड पांडा जैसे संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण में इसकी भूमिका आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी।