जब हम गाय की बात करते हैं, तो हमारे मन में एक आम घरेलू पशु की छवि बनती है। लेकिन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में एक खास किस्म की गाय पाई जाती है, जिसे मिथुन कहा जाता है। यह न केवल एक पालतू जानवर है, बल्कि वहां के लोगों की संस्कृति, आस्था और जीवनशैली का अहम हिस्सा भी है।
लेकिन अफसोस की बात ये है कि आज ये अनमोल जीव विलुप्ति के खतरे का सामना कर रहा है।
मिथुन आखिर है क्या?
मिथुन एक बड़ी, मजबूत और शांत स्वभाव वाली गायों की प्रजाति है। इसे वैज्ञानिक भाषा में Bos frontalis कहा जाता है। आमतौर पर यह अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर और कुछ पड़ोसी देशों जैसे भूटान और म्यांमार के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है।
यह जानवर ज्यादातर खुले जंगलों और पहाड़ियों में चरता है। इसकी खासियत यह है कि इसे ज्यादा देखरेख की ज़रूरत नहीं होती – यही वजह है कि कई आदिवासी समुदाय इसे जंगलों में आज़ादी से घूमने देते हैं।
मिथुन क्यों है खास?
पूर्वोत्तर भारत के कई समुदाय मिथुन को पवित्र मानते हैं। ये न सिर्फ धार्मिक रस्मों में काम आता है, बल्कि शादी-ब्याह, त्योहारों और पारंपरिक भेंट में भी इसकी भूमिका होती है।
यह एक तरह से सांस्कृतिक धरोहर है। इसके बिना वहां की पहचान अधूरी सी लगती है।
पर अब क्यों खतरे में है मिथुन?
अब सवाल उठता है कि जब ये इतना अहम है, तो इसकी संख्या क्यों घट रही है? इसके पीछे कई वजहें हैं:
- जंगलों की कटाई – मिथुन का घर जंगल है। जब पेड़ कटते हैं, तो उसका घर छिन जाता है।
- जलवायु परिवर्तन – मौसम में हो रहे बदलाव इसकी सेहत और प्रजनन पर असर डालते हैं।
- नई पीढ़ी की बेरुखी – आज के युवा पारंपरिक पशुपालन में कम दिलचस्पी ले रहे हैं।
- जमीन और जगह की कमी – इंसानी आबादी बढ़ने से मिथुन के लिए जगह कम हो गई है।
क्या हो रहा है संरक्षण के लिए?
अच्छी बात ये है कि कुछ संस्थान और सरकारें अब इस दिशा में काम कर रही हैं। नागालैंड में बना नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मिथुन (NRCM) इस प्रजाति को बचाने की कोशिश कर रहा है।
इसके अलावा स्थानीय सरकारें किसानों को मिथुन पालन के लिए प्रोत्साहन भी दे रही हैं। लेकिन यह तभी सफल हो पाएगा, जब हम सब मिलकर इसमें अपना योगदान दें।
हम क्या कर सकते हैं?
- मिथुन और इसके महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करें।
- स्थानीय समुदायों को सहयोग दें, ताकि वे पारंपरिक मिथुन पालन जारी रख सकें।
- जंगलों और पर्यावरण की रक्षा करें, ताकि मिथुन का घर बचा रहे।
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नतीजा क्या निकलता है?
मिथुन सिर्फ एक जानवर नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और प्रकृति का हिस्सा है। इसे बचाना मतलब हमारी जड़ों को बचाना। अगर हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो एक दिन ये सिर्फ किताबों और तस्वीरों में ही दिखाई देगा।
अब वक्त है सोचने का – क्या हम एक और प्रजाति को खोने के लिए तैयार हैं?